Amit Shah:
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने विपक्ष के इस आरोप को खारिज कर दिया कि नए आपराधिक कानूनों पर चर्चा नहीं की गई और उन्हें लागू करने से पहले उनसे सलाह-मशविरा नहीं किया गया।
अमित शाह ने कहा, “स्वतंत्र भारत के इतिहास में मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि इन नए कानूनों पर जितनी चर्चा हुई है, उतनी किसी कानून पर नहीं हुई। मैंने खुद 118 बार चर्चा बैठकों में हिस्सा लिया है।”
उनके मुताबिक, 30 घंटे चर्चा हुई और इसमें 34 सदस्यों ने हिस्सा लिया। उन्होंने कहा, “आजादी के 77 साल बाद आपराधिक न्याय प्रणाली अब पूरी तरह स्वदेशी है और भारतीय लोकाचार में समाहित है।”
विपक्ष दावा कर रहा है कि पिछले साल सरकार ने नए कानूनों को जबरन पारित किया और बिना चर्चा के ही उन्हें पारित कर दिया। उस समय विपक्ष के 140 से अधिक सांसदों को निलंबित कर दिया गया था। विपक्षी दल इस बात पर भी जोर दे रहे हैं कि स्थायी समिति ने असहमति के स्वरों पर भी गौर नहीं किया।
इस पर गृह मंत्री ने स्पष्ट किया कि केवल चार-पांच राजनीतिक प्रकार के सुझावों को छोड़ दिया गया, लेकिन अन्य सभी सुझावों पर चर्चा की गई और उन्हें शामिल किया गया। उन्होंने जोर देकर कहा, “मैं विपक्ष के लोगों से कहना चाहता हूं कि राजनीति से ऊपर उठकर इस विकास का समर्थन करें।” उन्होंने कहा कि केंद्र नए कानूनों के नाम बदलने के लिए भी तैयार है।
पहले से ही केरल उच्च न्यायालय में नए कानूनों के हिंदी नामों का विरोध करने वाली एक याचिका चल रही है और कई दक्षिण-आधारित राजनीतिक दल भी नए कानूनों के शीर्षक का विरोध कर रहे हैं क्योंकि उनके नाम हिंदी में हैं।
श्री शाह ने यह भी स्पष्ट किया कि नए कानून पुलिस को अधिक अधिकार नहीं देते हैं और रिमांड अवधि केवल 15 दिन ही रहेगी। उन्होंने कहा, “पहले 60 दिनों की अवधि में पुलिस किसी भी समय 15 दिनों के लिए हिरासत में ले सकती है।”
उन्होंने कहा, “अगले 3/4 वर्षों में पूरी प्रणाली में सुधार होगा। एफआईआर दर्ज करने से लेकर फैसला सुनाने तक तकनीक आधारित होगा।” उन्होंने कहा कि कानून अधिक वैज्ञानिक होंगे और साक्ष्य अधिक तकनीक आधारित होंगे। “मैं जनता को आश्वस्त करना चाहता हूं कि नए कानून में एफआईआर दर्ज होने के तीन साल के भीतर सुप्रीम कोर्ट के स्तर तक न्याय मिल सकेगा।”
केंद्र सरकार पिछले चार सालों से इस पर काम कर रही है और राज्यों तथा पुलिस बलों से नए कानून बनाने के लिए अपने सुझाव देने को कह रही है।
श्री शाह के अनुसार, 99% पुलिस स्टेशन कम्प्यूटरीकृत हो चुके हैं। “दंड की जगह अब न्याय है। देरी की जगह अब त्वरित सुनवाई और त्वरित न्याय होगा। पहले केवल पुलिस के अधिकारों की रक्षा होती थी, लेकिन अब पीड़ितों और शिकायतकर्ताओं के अधिकारों की भी रक्षा होगी,” श्री शाह ने कहा।
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