Live-in relationship :
Live-in relationship : पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने लिव-इन रिलेशन पर चिंता जताते हुवे न्यायमूर्ति संदीप मौदगिल की पीठ ने कहा की, अपने साथी के साथ लिव-इन में रहने के इच्छुक विवाहित लोगों को संरक्षण प्रदान करना गलत काम करने वालों को प्रोत्साहित करने और द्विविवाह प्रथा को बढ़ावा देने जैसा होगा
आपको बता दे की, लिव-इन रिलेशनशिप को लेकर समान नागरिक संहिता (यूसीसी) में रजिस्ट्रेशन कराने की बात कही गई है इस प्रावधान के तहत रजिस्ट्रेशन के वक्त लड़का-लड़की की माता-पिता को इसकी (लिव-इन रिलेशनशिप) सूचना दी जाएगी, इस बदलते जमाने में शादीशुदा लोगों का भी लिव-इन में रहने का चलन बढ़ रहा है और ऐसे मामलों पर कोर्ट को हस्तक्षेप करना पड़ा है
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घर से भागने वाले जोड़े न केवल अपने परिवारों की बदनामी करते हैं
अपने माता-पिता के घर से भागने वाले जोड़े न केवल अपने परिवारों की बदनामी करते हैं, बल्कि सम्मान और गरिमा के साथ जीने के अपने माता-पिता के अधिकार का भी उल्लंघन करते हैं, ऐसा न्यायमूर्ति संदीप मौदगिल की पीठ ने चिंता जताते हुवे कहा
हाईकोर्ट ने फैसला सुनाते कहा
हाईकोर्ट ने एक ऐसे ही मामले में फैसला सुनाते कहा कि, संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रत्येक व्यक्ति को शांति, सम्मान और गरिमा के साथ जीने का अधिकार है, इसलिए इस प्रकार की याचिकाओं को स्वीकार करके हम गलत काम करने वालों को प्रोत्साहित करेंगे और कहीं न कहीं द्विविवाह की प्रथा को बढ़ावा देंगे, जो भारतीय दंड संहिता की धारा 494 के तहत अपराध है और जिससे अनुच्छेद 21 के तहत पत्नी और बच्चों के सम्मान के साथ जीने के अधिकार का उल्लंघन होता है
क्या था मामला ?
अदालत ने 40 वर्षीय तलाकशुदा एक महिला और 44 वर्षीय एक पुरुष जो शादीशुदा है और दोनों के बच्चे भी है उनकी याचिका पर सुनवाई करते हुवे फैसला सुनाया, इस याचिका में याचिकाकर्ता ने उनके परिवारों से खतरे के कारण उन्हें सुरक्षा प्रदान किए जाने की मांग की थी, वे दोनों एक साथ रह रहे हैं
सभी लिव-इन संबंध विवाह की प्रकृति के संबंध नहीं हैं
न्यायमूर्ति संदीप मौदगिल की पीठ ने इस मामले में कहा कि उसका मानना है कि याचिकाकर्ताओं को पूरी जानकारी थी कि वे पहले से शादीशुदा हैं और वे लिव-इन संबंध में रह नहीं सकते, न्यायमूर्ति संदीप मौदगिल की पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता पुरुष ने अपनी पहली पत्नी से तलाक नहीं लिया है, सभी लिव-इन संबंध विवाह की प्रकृति के संबंध नहीं हैं, अदालत ने फैसला सुनाते हुवे आगे कहा कि अगर यह माना जाता है कि याचिकाकर्ताओं के बीच संबंध विवाह की प्रकृति के हैं, तो यह व्यक्ति की पत्नी और बच्चों के साथ अन्याय होगा. उसने कहा कि विवाह का मतलब एक ऐसा रिश्ता बनाना है, जिसका सार्वजनिक महत्व भी है
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