भारत और ईरान के बीच चाबहार बंदरगाह को लेकर समझौता हो गया है। समझौते में भारत को 10 साल के लिए चाबहार बंदरगाह की कमान सौंप दी गई है। इस बंदरगाह के जरिए अब भारत यूरोपीय देशों और मध्य एशियाई देशों के साथ तेजी से व्यापार कर सकता है।
भारत और ईरान के बीच ये समझौते से चाबहार बंदरगाह भारत का पहला विदेशी बंदरगाह होगा। अभी तक भारत और ईरान के बीच कई मुद्दों पर इस बंदरगाह को लेकर गतिरोध था। भारत की सबसे बड़ी चिंता ईरान के खिलाफ लगे अमेरिकी प्रतिबंध थे। ऐसे में भारत ने चाबहार बंदरगाह समझौते को लेकर अमेरिका को भी विश्वास में लिया है। चाबहार बंदरगाह पर भारत और ईरान का ये समझौता पाकिस्तान के लिए एक बड़ी भूराजनीतिक हार मानी जा रही है। चाबहार के रास्ते भारत यूरोपीय देशों और मध्य एशिया तक अपने सामान को जल्द से जल्द पहुंचा पाएगा। इस समझौते को पाकिस्तान में चीनी कर्ज से बने ग्वादर बंदरगाह का तोड़ भी माना जा रहा है।
चाबहार बंदरगाह जरूरी क्यों
अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा याने INSTC भारत, ईरान, अफगानिस्तान, आर्मेनिया, अजरबैजान, रूस, मध्य एशिया और यूरोप के बीच माल ढुलाई के लिए 7,200 किलोमीटर लंबी मल्टी-मोड परिवहन परियोजना है। याद रहे की चाबहार बंदरगाह को INSTC परियोजना के लिए एक प्रमुख केंद्र के रूप में भी देखा जाता है।
भारत और ईरान में समझौते से क्या होगा ?
नए दीर्घकालिक समझौते का उद्देश्य मूल अनुबंध की जगह लेना है, जो चाबहार बंदरगाह में शाहिद बेहेश्टी टर्मिनल पर भारत के संचालन को कवर करता है। पुराने समझौते को हर साल रिन्यूवल की जरूरत भी पड़ती है। अब नया समझौता 10 साल के लिए वैध होगा और ऑटोमेटिक आगे बढ़ाया जा सकता है। इसे भारत के लिए एक बड़ी भूराजनीतिक जीत बताया जा रहा है।
एस जयशंकर ने सुलझाई उलझी हुई चाबहार बंदरगाह की गुत्थी और चाबहार बंदरगाह पर तालिबान भी आया भारत के साथ
भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने 2021 में ताशकंद में एक कनेक्टिविटी सम्मेलन के दौरान चाबहार बंदरगाह को अफगानिस्तान सहित एक प्रमुख क्षेत्रीय पारगमन केंद्र ( माल को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने की प्रक्रिया ) के रूप में पेश किया था। 2016 से अफगानिस्तान से इसकी कनेक्टिविटी के लिए, जब उपमहाद्वीप ने टर्मिनल विकसित करने के लिए ईरान और अब तालिबान के नेतृत्व वाले राष्ट्र के साथ त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किए थे।