Rape :
Rape : 2019 के यौन उत्पीड़न मामले में एक आरोपी को इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस राहुल चतुर्वेदी और जस्टिस नंद प्रभा शुक्ला की खंड पीठ ने यह कहते हुए बरी कर दिया कि हमेशा मर्द ही गलत साबित हो, ऐसा नहीं होता। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि भले ही कानून महिलाओं के हितों की रक्षा करते हैं, लेकिन सिर्फ आदमी ही हमेशा दोषी हो, ऐसा नहीं होता है। खंडपीठ ने शादी का झूठा दिलासा देकर यौन उत्पीड़न करने के 2019 के एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि ऐसे मामलों में केस को साबित करने की जिम्मेदारी आरोपी और शिकायतकर्ता, दोनों पर होती है।
क्या था मामला ?
एक महिला ने एक व्यक्ति के खिलाफ SC-ST कानून के तहत 2019 में केस दर्ज कराया था, पीड़ित महिला ने कहा था कि, आरोपी ने उससे वादा किया कि वह उससे शादी करेगा, और शादी के नाम पर उसके साथ शारीरिक संबंध बनाता रहा लेकिन बाद में शादी से इनकार कर दिया, महिला ने यह भी आरोप लगाया कि, जब उसने (महिलाने) शादी के लिए जोर दिया तो आरोपी ने उसके साथ जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल करते हुए उसको अपमानित किया था
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अपनी जाति भी गलत बताई थी
आरोपी के खिलाफ 2020 में चार्जशीट दाखिल की गई और सुनवाई के दौरान ट्रायल कोर्ट कहा की, दोनों के बीच आपसी सहमति से संबंध बने थे और पूरे मामले की पड़ताल के बाद पता चला कि महिला की 2010 में ही शादी हो चुकी थी और आरोपी को बरी करते हुवे कोर्ट ने ये भी कहा की, महिला अपने पति से अलग रह रही थी और महिला ने जिस व्यक्ति पर अब यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया है, उससे शादी की बात छिपाई थी और अपनी जाति भी गलत बताई थी
शादी-ब्याह के मामलों में आज भी जाति हमारे समाज में मायने रखती है
कोर्ट ने कहा कि शादी-ब्याह के मामलों में आज भी जाति हमारे समाज में मायने रखती है, कोर्ट ने ये भी कहा कि शिकायतकर्ता यह भी साबित नहीं कर पाई कि उसने अपनी जाति को लेकर क्यों झूठ बोला और पहली शादी के बारे में क्यों छिपाया ?