Sardar Patel :
Sardar Patel : इतिहास से मिटाया गया एक खूनी सत्य, भावनगर की नगीना मस्जिद और 100 लोगों द्वारा कातिलाना हमला
Sardar Patel : इतिहास के एक ऐसे दबे हुवे पन्ने की आज बात करते है जिसे पढ़कर आपकी रूह कांप जाएगी, जिसे पढ़कर आप के मन में भी सवाल उठेगा की आखिर क्यों इस खूनी ऐतिहासिक घटना को दबाया गया और जनता के सामने रखा ही नहीं ?
सरदार वल्लभभाई पटेल : डॉ प्रधयुमन खाचर जो इतिहास पढ़ाते थे और उनकी 28 किताबे प्रकाशित भी हुई थी इतना ही नहीं बल्कि डॉ खाचर प्रसिद्ध दैनिक फुलछाब और दैनिक मुंबई समाचार के लेखक भी रहे है, उन्होंने एक ऐसी बात देश के सामने रखी है जिसे इतिहासकारों और तत्कालीन सरकार द्वारा दबाया गया था |
- 14 मई 1939, रविवार का काला दिन
- 57 शांतिप्रिय लोग, नगीना मस्जिद
- 100 लोग तलवारें, चाकुओं और भालों के साथ जीप की ओर दौड़ पड़े
- सरदार पटेल को पकड़ कर खड़े हो गए
- नेहरू सरकार ने इस घटना को इतिहास की किताबों से मिटा दिया
खूनी खेल इतिहास से क्यों दबाया गया ?
महात्मा गांधी की हत्या नाथूराम गोडसे ने की थी, लेकिन हमें कभी यह नहीं पढ़ाया गया कि 14 मई 1939 को भावनगर में सरदार पटेल पर किसने हमला किया और उनकी हत्या करने की कोशिश की तथा कितने अपराधियों को अदालत ने मौत की सजा और आजीवन कारावास की सजा सुनाई। क्या आपको पता है ? कभी पढ़ाया गया ये खूनी इतिहास ?
57 शांतिप्रिय लोग तलवारें, चाकुओं और भालों के साथ जीप की ओर दौड़ पड़े
Attack on Sardar Vallabhbhai Patel : आइए बात करते है उस दिन आखिर क्या हुवा था ? भावनगर राज्य जन परिषद का पांचवा अधिवेशन 14 और 15 मई 1939 को सरदार वल्लभभाई पटेल की अध्यक्षता में भावनगर में आयोजित किया जाना था। सरदार वल्लभभाई पटेल भावनगर पहुंचे और रेलवे स्टेशन से खुली जीप में उनका भव्य जुलूस निकाला गया।

सरदार पटेल खुली जीप में बैठे थे और सड़क के दोनों ओर खड़े लोगों का अभिवादन स्वीकार कर रहे थे। जब जुलूस खार गेट चौक पर पहुंचा तो नगीना मस्जिद में छिपे 57 शांतिप्रिय लोग तलवारें, चाकुओं और भालों के साथ जीप की ओर दौड़ पड़े। दो युवकों बच्चूभाई पटेल और जाधवभाई मोदी ने उसे देखा, वे चारों ओर से सरदार पटेल को पकड़ कर खड़े हो गए और ढाल की तरह अपने ऊपर हो रहे पूरे घातक हमले को झेलने लगे। वह सरदार पटेल के सुरक्षा कवच बन गये। हमलावरों ने दोनों युवकों पर तलवार से कई वार किए, जिसमें बच्चूभाई पटेल की मौके पर ही मौत हो गई, जबकि जाधवभाई मोदी की अस्पताल में मौत हो गई। उन दोनों वीर युवकों की मूर्तियां भी उस स्थान पर स्थापित की गई हैं जहां उनकी मृत्यु हुई थी। घटना के दिन भावनगर के महाराजा महुवा में थे |
57 आरोपियों को गिरफ्तार किया गया जिनके नाम कुछ इस प्रकार है
तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने इस घटना की गहराई से जांच की और एक विशेष अदालत का गठन किया। 57 आरोपियों को गिरफ्तार किया गया, जिनमें से आजाद अली, रुस्तम अली सिपाही को मौत की सजा सुनाई गई और
- कासिम दोसा घांची,
- लतीफ मियां काजी,
- मोहम्मद करीम सिपाही,
- सैयद हुसैन,
- चांद गुलाब सिपाही,
- हाशम सुमरा संधि,
- लोहार मूसा अब्दुल्ला,
- अली मियां अहमद मियां सैयद,
- अली ममद सुलेमान,
- मोहम्मद सुलेमान कुनबर,
- अबू बक्र अब्दुल्ला,
- लोहार अहमदिया,
- मोहम्मद मियां काजी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई।

दो जजमेंट और सजा .. दिन थे
15/5/1939 को दूसरे आरोपी भी पकड़े गए और इस केस का प्रथम जजमेंट आने में 5 महीना 5 दिन का समय लगा था याने प्रथम जजमेंट 20/11/1939 के दिन आया और दूसरा जजमेंट आने में 13 महीने 24 दिन का समय लगा था याने दूसरा जजमेंट 09/07/1940 के दिन आया था | प्रथम जजमेंट में 2 लोगों को फांसी दी गई थी बाद में हुजूर कोर्ट ने एक को फांसी और दूसरे की सजा कम कर दी थी | न्यायाधीश त्रिवेदी साहब ने 20/11/1939 के दिन जजमेंट देते व्यक्त कहा की “यह खूनी हमला कौमी से ज्यादा राजकीय था “

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प्रथम केस में बचाव पक्ष के वकीलों के नाम थे
- डी.क्रूज (मुंबई)
- ओसमान (राजकोट)
- अहेमद और लाखानी (स्थानिक वकील)
- काशिराम जानी (पब्लिक प्रोसिक्यूटर)
- रतीलाल जोशी (खास नियुक्ति)
इस केस में नामदार न्यायाधीशों के नाम
- श्री त्रिवेदी साहेब
- श्री उनावाला साहेब स्पेशयल जॉइन्ट सर न्यायाधीश
- श्री सुनावाला साहेब जॉइन्ट सर न्यायाधीश
- श्री के के शाह पब्लिक प्रोसिक्यूटर
- श्री आई आर चुंदरीगर मुंबई (साक्षियों की उलट तपास )
- वकील श्री सर सुलेमान कासम मीठा मुंबई
- आपको बता दे की सब वकीलों को मेमन बोर्डिंग में ठहराया गया था
आरोपियोने अदालत को बताया कि सरदार वल्लभभाई पटेल ने कोलकाता में मुस्लिम लीग के खिलाफ भाषण दिया था। इसी आधार पर उनकी हत्या की साजिश रची गई।
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इस केस में जांच करनेवाले पुलिस अफसरों के नाम
- श्री पोपटभाई उर्फ कृषणचंद्र कालुभा झाला
- श्री छेलशकर दवे उर्फ छेलभाई जिनकी खास नियुक्ति थी
- श्री सीनियर इंस्पेक्टर देवराम
- श्री बालशंकर शहर फ़ोजदार
श्री छेल शंकर दवे जी को लोग काठीयावाडी शेर के नाम से जानते थे

दुर्भाग्यपूर्ण है की इस खूनी खेल को इतिहास के पन्नों से गायब कर दिया गया
यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि पटेल जी की मृत्यु के बाद नेहरू सरकार ने इस घटना को इतिहास की किताबों से मिटा दिया ताकि भविष्य में किसी को यह पता न चले कि सरदार पटेल पर जानलेवा हमला और उनकी हत्या की साजिश कभी शांतिप्रिय लोगों द्वारा रची गई थी।
संदर्भ : सरदार वल्लभभाई पटेल भावनगर मे
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